it rules amendment 2023 में किए गए संशोधन को शुक्रवार को बॉम्बे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया, जो केंद्र सरकार को एक fact-checking unit (FCU) स्थापित करने का अधिकार देता था। इस यूनिट का aim सोशल media पर govt. और उसके प्रतिष्ठानों के खिलाफ फेक न्यूज़ , गलत information, और मिस लीडिंग content की पहचान करना था।
it rules amendment 2023|fact-checking unit (FCU) को बॉम्बे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया
Bombay High Court Strikes Down IT Rules 2023 Amendment; Calls it Violation of Free Speech
IT Rules 2023 के संशोधन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को मजबूर किया था कि वे fake, false, और misleading information को हटाएं। अगर प्लेटफॉर्म्स ऐसा नहीं करते, तो वे safe harbour status खो सकते थे, जो उन्हें Section 79 of the IT Act, 2000 के तहत कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।
High Court Verdict on IT Rules 2023
न्यायमूर्ति अतुल शरदचंद्र चंदुरकर ने शुक्रवार को यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें उन्होंने IT Rules 2023 Amendment को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), और अनुच्छेद 19(1)(जी) (व्यवसाय की स्वतंत्रता) के खिलाफ बताया। कोर्ट ने कहा कि इन संशोधित नियमों में इस्तेमाल की गई शब्दावली, जैसे “fake, false, और misleading,” स्पष्ट परिभाषा के बिना हैं, जिससे इन्हें लागू करना मुश्किल हो जाता है।
न्यायमूर्ति चंदुरकर ने यह भी कहा कि यह संशोधन सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर chilling effect डाल सकता है, जिससे वे खुद को नियंत्रित करने में डर सकते हैं। इससे पहले 31 जनवरी 2024 को न्यायमूर्ति गौतम पटेल और नीला गोखले की खंडपीठ ने इस मामले में विभाजित फैसला सुनाया था। न्यायमूर्ति पटेल ने इसे असंवैधानिक माना, जबकि न्यायमूर्ति गोखले ने इसे सही ठहराया था। इसके बाद मामला न्यायमूर्ति चंदुरकर के पास भेजा गया था।
it rules amendment 2023|fact-checking unit (FCU) को बॉम्बे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया
Background of the Case
April 2023 में centre govt. के इलेक्ट्रॉनिक्स और IT मंत्रालय ने IT Rules 2021 में संशोधन करके fact-checking unit (FCU) की स्थापना की थी। इसका उद्देश्य सरकारी प्रतिष्ठानों और नीतियों से संबंधित गलत सूचनाओं की पहचान करना था। इस संशोधन के खिलाफ राजनीतिक व्यंग्यकार कुणाल कामरा, Editors Guild of India, News Broadcasters and Digital Association, और Association of India Magazines (AIM) ने याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह संशोधन freedom of speech और freedom of expression का उल्लंघन करता है, जो कि संविधान के तहत दिए गए मौलिक अधिकार हैं। इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने इसे सरकार की overreach भी बताया।
Arguments for and Against the Amendment
सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जुलाई 2024 में एफसीयू का बचाव करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य misinformation को रोकना है। उन्होंने कहा कि कई private companies और व्यक्ति भी fact-checking करते हैं, तो सरकार को भी गलत सूचनाओं के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है।
वहीं, याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने तर्क दिया कि Press Information Bureau (PIB) पहले से ही सरकारी सूचनाओं की जांच करता है और ऐसे में FCU की जरूरत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि अभी तक सरकार ने कोई ऐसा मामला प्रस्तुत नहीं किया है जिससे यह साबित हो कि fact-checking unit के अभाव में उसे कोई नुकसान हुआ हो।
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Reaction to the Verdict
इस फैसले का स्वागत Editors Guild of India और digital rights groups ने किया। Internet Freedom Foundation ने इसे ऑनलाइन स्पेस में freedom of expression की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह फैसला उन लोगों के लिए एक जीत है जो online freedom और digital rights की वकालत करते हैं।
कुणाल कामरा ने भी इस फैसले का स्वागत किया और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पूर्व में Twitter) पर पोस्ट करते हुए कहा, “वे कोशिश करते रहेंगे, लेकिन हम भारतीय हमेशा संविधान की रक्षा करेंगे और सत्ता के नशे में चूर लोगों को सबक सिखाएंगे।”
Implications of the IT Rules 2023 Amendment
इस संशोधन के तहत, सरकार सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स जैसे Facebook, Instagram, X (Twitter), और YouTube से सरकारी मामलों से संबंधित कंटेंट को हटाने के लिए कह सकती थी, यदि वह fake, false, या misleading के रूप में पहचाना गया हो। अगर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स ऐसा करने में विफल रहते, तो वे safe harbour protection खो सकते थे, जो उन्हें कानूनी कार्रवाई से बचाता है।
इस संशोधन को लेकर आलोचकों का कहना था कि यह government overreach है और इससे स्वतंत्र मीडिया और सिविल सोसाइटी की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है।
Conclusion
बॉम्बे हाई कोर्ट का यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकार द्वारा बनाए गए fact-checking unit को असंवैधानिक ठहराते हुए, कोर्ट ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि free speech और free expression पर किसी भी प्रकार की रोक संविधान के खिलाफ है।