china intercontinental ballistic missile (ICBM) का एक परीक्षण 25 सितंबर 2024 को चीन ने किया, जिसे प्रशांत महासागर में दागा गया। यह दशकों बाद चीन द्वारा किया गया ऐसा पहला Missile Test था। इस परीक्षण ने क्षेत्रीय देशों में चिंता का माहौल पैदा कर दिया है, खासकर जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे पड़ोसी देशों में, जिन्होंने इसे लेकर विरोध प्रकट किया है।
चीन ने किया अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण: जापान और ऑस्ट्रेलिया ने जताई गंभीर चिंता
china intercontinental ballistic missile|JP/AUS में गंभीर चिंता Sep 25
परीक्षण पर क्षेत्रीय प्रतिक्रिया
चीन के पड़ोसी जापान ने आरोप लगाया कि उसे इस परीक्षण के बारे में कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई थी। जापानी सरकार के प्रवक्ता ने इसे गंभीर चिंता का विषय बताया और चीन की बढ़ती Military Power को लेकर असंतोष व्यक्त किया।
जापान के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया ने भी इस परीक्षण पर नाराजगी जताई और कहा कि वे इस संबंध में चीन से स्पष्टीकरण मांग रहे हैं। ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्रालय ने कहा, “इस प्रकार की गतिविधि अस्थिरता पैदा कर सकती है और क्षेत्रीय संघर्षों में गलतफहमी की संभावना को बढ़ा सकती है।”
न्यूजीलैंड ने भी मिसाइल परीक्षण पर चिंता जताते हुए इसे “अवांछनीय और खतरनाक” करार दिया। न्यूजीलैंड के विदेश मंत्री के प्रवक्ता ने कहा कि प्रशांत महासागर में गिरे इस Missile Launch के संबंध में वे अपने सहयोगियों के साथ और अधिक विचार-विमर्श करेंगे।
china intercontinental ballistic missile|JP/AUS में गंभीर चिंता Sep 25
चीन की ओर से सफाई
चीन के रक्षा मंत्रालय ने परीक्षण को “वार्षिक प्रशिक्षण योजना का हिस्सा” बताया और कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप है। मंत्रालय के अनुसार, यह परीक्षण किसी देश को लक्षित नहीं था और पूरी प्रक्रिया अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करते हुए की गई। रक्षा मंत्रालय ने कहा, “रॉकेट फोर्स ने 25 सितंबर को सुबह 08:44 बजे ICBM लॉन्च किया, जिसमें एक नकली वारहेड प्रशांत महासागर के उच्च समुद्र क्षेत्र में गिरा।”
परीक्षण को लेकर विशेषज्ञों की राय
Carnegie Endowment for International Peace के वरिष्ठ फेलो अंकित पांडा ने इसे अत्यधिक असामान्य घटना बताया और कहा, “यह दशकों में पहली बार है जब हमने इस प्रकार का परीक्षण देखा है।
यह चीन की परमाणु क्षमताओं को बढ़ाने के उसके निरंतर प्रयासों का हिस्सा हो सकता है।” उन्होंने कहा कि यह परीक्षण चीन की परमाणु आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को दर्शाता है, जो नए परीक्षण आवश्यकताओं की ओर इशारा करता है।
हालांकि, चीन ने इस परीक्षण को नियमित प्रक्रिया का हिस्सा बताया और इसे किसी विशेष देश के खिलाफ नहीं बताया।
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चीन की सैन्य शक्ति में वृद्धि
पिछले कुछ वर्षों में चीन ने अपनी Nuclear Weapons क्षमता को तेजी से बढ़ाया है और रक्षा बजट में भारी वृद्धि की है। अमेरिकी रक्षा विभाग ने पिछले साल अक्टूबर में चेतावनी दी थी कि चीन अपनी सैन्य क्षमताओं को अपेक्षा से तेज़ी से बढ़ा रहा है।
मई 2023 तक चीन के पास 500 से अधिक परिचालन Nuclear Warheads थे और संभावना है कि 2030 तक यह संख्या 1,000 से अधिक हो जाएगी।
चीन की रॉकेट फोर्स ने इस परीक्षण को अंजाम दिया, जो देश की परमाणु ताकत का प्रबंधन करती है। इस परीक्षण ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में एक नई बहस छेड़ दी है, खासकर तब जब चीन अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है।
इसके साथ ही चीन ने अपनी Nuclear Modernization की नीति में भी बदलाव लाते हुए कहा कि वह प्रतिरोधक क्षमता के साथ-साथ प्रतिशोध की स्थिति में भी सक्षम होना चाहता है।
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चीन की परमाणु नीति और भ्रष्टाचार के आरोप
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में देश ने अपनी सैन्य ताकत को तेजी से आधुनिक बनाने की दिशा में कदम उठाए हैं। इसका एक हिस्सा परमाणु हथियारों के आधुनिकीकरण का भी है।
हालांकि, चीन की रॉकेट फोर्स को एक बड़ी भ्रष्टाचार विरोधी अभियान का सामना भी करना पड़ा है। जुलाई में यह घोषणा की गई थी कि रॉकेट फोर्स के पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ सुन जिनमिंग के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की जा रही है।
चीन के इस परीक्षण से क्षेत्रीय देशों में बढ़ती चिंताओं के बीच अमेरिका ने कहा है कि वह इस पर नज़र बनाए हुए है और इससे संबंधित सभी जानकारी एकत्र कर रहा है।
अमेरिका और चीन के बीच नवंबर में Nuclear Arms Control पर दुर्लभ बातचीत हुई थी, जिसमें दोनों देशों के बीच बढ़ते अविश्वास को कम करने का प्रयास किया गया था।
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वैश्विक प्रतिक्रिया और भविष्य के संकेत
चीन का यह परीक्षण वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, खासकर तब जब चीन ने अपने रक्षा बजट में 7.2% की वृद्धि की घोषणा की है।
यह वृद्धि तब आई है जब चीन अमेरिका और उसके क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ विभिन्न मुद्दों पर टकराव में है, जिनमें दक्षिण चीन सागर से लेकर ताइवान तक के मामले शामिल हैं।
हाल ही में चीन और अमेरिका के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के बीच “गहन” बातचीत हुई थी, ताकि बढ़ते तनाव को नियंत्रण में रखा जा सके और इसे किसी बड़े संघर्ष में बदलने से रोका जा सके।
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हालांकि, चीन की मौजूदा नीतियों और सैन्य क्षमताओं को देखते हुए यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में Asia-Pacific Region में तनाव और अधिक बढ़ सकता है।