Dumb as a Dodo: इंसानी लापरवाही से विलुप्त|क्या really “मूर्ख” था?

Dumb as a Dodo: इंसानी लापरवाही से विलुप्त|क्या  really “मूर्ख” था?
Dumb as a Dodo

Dumb as a Dodo: इंसानी लापरवाही से विलुप्त|क्या really “मूर्ख” था?डोडो को अक्सर उन जानवरों का प्रतीक माना जाता है जो इंसानों के संपर्क में आने के बाद विलुप्त हो गए। इसकी छवि एक बड़े, आलसी और “मूर्ख” पक्षी की बनी, जिसे Lewis Carroll की Alice in Wonderland ने “डोडो जैसा मूर्ख” कहकर अमर कर दिया।

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Dumb as a Dodo: इंसानी लापरवाही से विलुप्त|क्या really “मूर्ख” था?

लेकिन क्या वाकई डोडो इतना धीमा और भोला था? इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए, साउथैम्पटन यूनिवर्सिटी, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री, और नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के शोधकर्ताओं ने 400 साल के शोध को खंगाला और डोडो के कुछ बची हुई soft tissue का अध्ययन किया।

क्या डोडो वाकई में मंदबुद्धि था?

शोधकर्ताओं ने पाया कि डोडो को अक्सर गलत समझा गया। यह पक्षी उतना धीमा या बेवकूफ नहीं था जितना इसे माना जाता था। डोडो और उसकी बहन प्रजाति, सोलिटेयर, वास्तव में तेज गति से दौड़ सकते थे और मॉरीशस के जंगलों में अच्छी तरह से जीवित थे। साउथैम्पटन यूनिवर्सिटी के नील गोस्टलिंग ने बताया कि डोडो और सोलिटेयर की विलुप्ति इंसानों की लापरवाही और अहंकार के कारण हुई, क्योंकि 17वीं सदी में लोग यह नहीं समझते थे कि उनकी गतिविधियाँ किसी प्रजाति को पूरी तरह से नष्ट कर सकती हैं।

डोडो कैसे विलुप्त हुआ?

विक्टोरियन युग के वैज्ञानिकों के शोध के आधार पर हम जानते हैं कि डोडो और सोलिटेयर उड़ानविहीन पक्षी थे जो केवल मॉरीशस के जंगलों में पाए जाते थे। शोध में पता चला कि डोडो का सबसे निकटतम संबंध निकोबार कबूतर (Nicobar pigeon) से था। हालांकि, डोडो हमेशा से उड़ानविहीन नहीं था; हजारों वर्षों में ये पक्षी बड़े होते गए और जमीन पर रहने लगे। जब डच नाविक 1598 में मॉरीशस पहुंचे, तो उन्होंने इन पक्षियों को बड़े, उड़ानविहीन और सावधानियों से मुक्त पाया।

डोडो की संख्या धीरे-धीरे घटने लगी, और एक सदी के भीतर यह पूरी तरह से विलुप्त हो गया। डोडो के अंडे जमीन पर होते थे, और डच जहाजों से लाए गए सूअर, चूहे, और बिल्ली ने उनके अंडों और बच्चों को नष्ट कर दिया, जबकि बकरी उनके घोंसलों को कुचल देती थी।

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डोडो के बारे में गलत धारणाएँ

डोडो और सोलिटेयर के तेजी से विलुप्त होने के कारण इनके जीवन के बारे में बहुत कम वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध हैं। अधिकांश प्रारंभिक शोधकर्ताओं ने कलाकारों की छवियों और नाविकों की रिपोर्ट्स पर भरोसा किया, जो अक्सर गलत थीं।

शोधकर्ताओं ने डच नाविक वोल्कर्ट एवर्ट्सज़ (Volkert Evertsz) के एक 1662 के प्रत्यक्षदर्शी के बयान की खोज की, जिसमें उन्होंने डोडो को एक बड़ा, उड़ानविहीन, लेकिन तेज दौड़ने वाला पक्षी बताया था। डोडो के पैरों की तिबियोटार्सस हड्डी (Tibiotarsus bone) का अध्ययन करने पर पता चला कि इसमें एक बड़ा टेंडन था, जो कि उन पक्षियों में पाया जाता है जो अच्छे धावक होते हैं।

डोडो का भविष्य: क्या हम इससे कुछ सीख सकते हैं?

डोडो की विलुप्ति की कहानी इंसानों द्वारा जैव विविधता की उपेक्षा का प्रतीक बन चुकी है। मार्कस हेलर, जो साउथैम्पटन यूनिवर्सिटी में बायोमेकैनिक्स के प्रोफेसर हैं, ने कहा कि डोडो के जीवन और उसके पर्यावरण को समझने से हम आज के पक्षियों और जानवरों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण सबक सीख सकते हैं।

Dumb as a Dodo: इंसानी लापरवाही से विलुप्त|क्या really “मूर्ख” था?

शोधकर्ताओं की टीम अब एक बड़े नए प्रोजेक्ट की योजना बना रही है, जिसमें दुनिया भर के वैज्ञानिक शामिल होंगे, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या डोडो वास्तव में विलुप्त होने के लिए “बाध्य” था या इसके विलुप्त होने का कारण पूरी तरह से इंसानों की लापरवाही थी। नील गोस्टलिंग ने कहा, “17वीं सदी के नाविकों को अपनी गतिविधियों का पता नहीं था, लेकिन हमें अब पता है कि हमारी गतिविधियाँ पर्यावरण को कैसे प्रभावित कर सकती हैं।”

Dumb as a Dodo: इंसानी लापरवाही से विलुप्त|क्या really “मूर्ख” था?

डोडो की कहानी हमें याद दिलाती है कि मानव हस्तक्षेप से पूरी प्रजातियों का अंत हो सकता है, और हमें अब भी अपने पर्यावरण पर ध्यान देने की ज़रूरत है ताकि भविष्य में और नुकसान न हो।

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